आज करने को कोई काम नहीं है,
फिर भी थोड़ी आराम नहीं है,
रात अब होने को चली है,
पर लगता है जैसे की शाम नहीं है ।
बड़ा ही अँधेरा दिखने लगा है,
आसमान में चाँद तारों का नाम नहीं है,
सोचा आज गुज़ारूं एक शाम तेरे आशियाने पर ,
पर यहाँ खिदमत का कोई इंतज़ाम नहीं है ।
ये अँधेरी शाम मुझे सलाखों में कैद करना चाहती है ,
पर किस्मत से मुझ पर कोई इल्ज़ाम नहीं है ।
डर है कहीं डर कर बैठ न जाऊँ इस अंधरे से ,
पर हौसले भी हैं और ये दिल बेजान नहीं है ।
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