चंद लब्ज़ों में कैसे कर दूँ तारीफ़ उनकी,
जिनकी यादें जैसे कोई भूलभुलैया सी हैं।

" जाने किस स्टेशन से मिलेगी वो सुकून वाली गाड़ी, उसपर बैठकर मुझे सारा सफर सुकून से गुज़ारना है। "

मैं और तुम

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मैं बूँद हूँ तुम नदी ,
मैं दिन हूँ तुम सदी ,
मैं रात हूँ तुम चाँदनी ,
हर श्रृंगार में तुम सादगी ,
तेरे बिना मैं अधूरा ,
मेरे बिना भी तुम पूरी।

मैं राह हूँ तुम राही ,
मैं कलम हूँ तुम स्याही ,
मैं पतझड़ हूँ तुम सावन ,
मैं गोकुल तुम वृन्दावन ,
हैं दूरी अपनी मीलों की ,
पर प्रेम अपना है सुहावन।

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ख्वाब मिला आज

ख्वाब मिला आज सिरहाने पर मुझे ,
वह ज़िद्द कर बैठा आज़माने पर मुझे ,
मैं सोया भी तो आँखें खोलकर,
वह भेज रहा था शायद मयखाने पर मुझे।

हर बार मिला देता है एक अजनबी से मुझको ,
वह ले बैठा है निशाने पर मुझे ,
मनाता भी नहीं अगर रूठ जाऊं मैं तो ,
उसको ऐतराज़ है शायद मुस्कुराने पर मुझे।

न कभी साथ रहता है, न ही कभी दूर जाता है ,
उसकी पूरी कोशिश है कहीं उलझाने पर मुझे ,
उसको रास नहीं आता दो पल हंसना मेरा ,
वह खुश है मुझसे ही रूठ जाने पर मुझे।
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" टूट जाती है नींद भी अक्सर ख्वाबों के बीच में , कहाँ कोई आता है साथ उम्रभर का लेकर । "

" मिल जाता दूसरा कोई उसके गुम हो जाने पर, क़ाश वो बचपन का खिलौना ज़िंदा न हुआ होता । "

वो जो सुनाते हैं कोई किस्सा तो...

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वो जो सुनाते हैं कोई किस्सा तो यकीन कर लेता हूँ ,
ज़रूरी नहीं की हर बार सच को ही सच माना जाये।

दिल, दिमाग, किस्मत, सबकी छोड़ो , कभी अपनी भी सुन लो ,
क्यों हर बार आसमान में सिक्का ही उछाला जाये ।

चाकू खंज़र ज़रूरी नहीं

चाकू खंज़र ज़रूरी नहीं अब क़त्ल करने के लिए ,
अब जानलेवा हो गया है आँखों में उतर जाना किसी का।
मैं इशारा जो कर दूँ तो ये आग धधक पड़े ,
फिर जल गया तो आशियाना किसी का ।
रईसों की बस्ती में मयखाना नहीं एक भी ,
फिर भी खाली नहीं है पैमाना किसी का ।
नशे में बेसुध सब अपनी दास्ताँ बयाँ कर रहे हैं ,
मैं भी बैठ जाऊँ क्या सुनने अफसाना किसी का ।
मैं अकेला इस राह पर उन्हें ढूँढू भी तो कैसे ,
अब काम नहीं आता कुछ भी बतलाना किसी का ।
समझदार थे कुछ लोग जो लौट गए पिछले ही मोड़ से ,
वो शायद समझ गए होंगे समझाना किसी का ।

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One Liner

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मैं सितारों की भीड़ में कब से उनको ढूँढ रहा था ,
और वो चाँद बनकर हमको गुमराह करते रहे।

– कुन्दन वर्मा

रख दूँ कहीं छुपाकर तेरी ढेर सारी यादों को,
पर हर पल कम्बख्त ये थोड़ी बढ़ सी जाती हैं।

– कुन्दन वर्मा

कुछ बदला-बदला सा है मिज़ाज़ इन हवाओं का,
लगता है आज ये उनसे मिलकर आये हैं।

– कुन्दन वर्मा

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