रूठ जाती है अक्सर मुझसे मेरी ही परछाई , न
मेरे गांव की अनजान गलियों सी हैं यादें उनकी ,
मैं सितारों की भीड़ में कब से उनको ढूंढ रहा
उनकी ख़ामोशी भी बड़ी ही कमाल की है , वो
बेवजह ही पड़े हैं हम मौसम के पीछे ,जब पता
वो बातें जो खुद से की जातीं हैं , वो
वैसे तो दर्द में भी मुस्कुराना हमारी आदत है,पर ये
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