वो जो सुनाते हैं कोई किस्सा तो यकीन कर लेता हूँ,
ज़रूरी नहीं की हर बार सच को ही सच माना जाये।
दिल, दिमाग, किस्मत, सबकी छोडो, कभी अपनी भी सुन लो,
क्यों हर बार आसमान में सिक्का ही उछाला जाये।
कई शख्स बैठे हैं आजकल अब एक ही शख्स के भीतर,
चलो आज सिद्दत से उन सबको बाहर निकला जाये।
उनसे कह दो की गलती उनकी भी है, वो भी हद में रहें,
क्यों हर बार अब खुद को ही संभाला जाये।
नहीं मिलता वफादार कोई अब एक भी शख्स यहाँ पर,
चलो उस एक की तलाश में पूरी दुनिया खंघाला जाये।
हम इबादत करते हैं उनकी तो शायद वो भी करते होंगे,
अब ये ग़लतफहमी भी कब तक पाला जाये।
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