सपनों की दुनिया

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सपनों की दुनिया

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सोचता हूँ बनाऊँ मैं एक ऐसी दुनिया सपनो का ।

न डर हो किसी के खोने का, ना छूटे साथ अपनों का ।

ना रूठकर जाये कोई, ना फिकर हो मनाने का ।

सोचता हूँ बनाऊँ मैं एक ऐसी दुनिया सपनों का । ।

हर कोई यहाँ अपना हो, ना लगे कुछ भी सपना हो ।

वो पा लूँ जिसकी चाहत हो, ना किसी को किसी से नफरत हो ।

ना डर हो इस ज़माने का, ना टूटने के आशियानों का ।

सोचता हूँ बनाऊँ मैं एक ऐसी दुनिया सपनों का । ।

वो खुदा जहा पर मिल जाये, हर दुआ कबूल हो जाये ।

जहाँ फूल पत्थर पर खिल जाये, जहाँ आसमां जमीं पर मिल जाये ।

और सुन लूँ बात धड़कनों का ।

सोचता हूँ बनाऊँ मैं एक ऐसी दुनिया सपनों का । ।

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