सोचता हूँ बनाऊँ मैं एक ऐसी दुनिया सपनो का ।
न डर हो किसी के खोने का, ना छूटे साथ अपनों का ।
ना रूठकर जाये कोई, ना फिकर हो मनाने का ।
सोचता हूँ बनाऊँ मैं एक ऐसी दुनिया सपनों का । ।
हर कोई यहाँ अपना हो, ना लगे कुछ भी सपना हो ।
वो पा लूँ जिसकी चाहत हो, ना किसी को किसी से नफरत हो ।
ना डर हो इस ज़माने का, ना टूटने के आशियानों का ।
सोचता हूँ बनाऊँ मैं एक ऐसी दुनिया सपनों का । ।
वो खुदा जहा पर मिल जाये, हर दुआ कबूल हो जाये ।
जहाँ फूल पत्थर पर खिल जाये, जहाँ आसमां जमीं पर मिल जाये ।
और सुन लूँ बात धड़कनों का ।
सोचता हूँ बनाऊँ मैं एक ऐसी दुनिया सपनों का । ।
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